१९९० से २००० के बीच में पैदा हुए लोगों का प्रेम करने का तरीका अपने आप में अनूठा होता था। जहाँ एक तरफ प्रेमी अपनी प्रेयसी को रिझाने के लिए अलग-अलग तरीके के स्वांग रचता था, वही प्रेमिका अपने पीछे पड़े हुए (उसकी नज़र में लफंगे) प्रेमी को नाको चने चबवा देती थी। उस दौर के बच्चे जब अपने उम्र के १३-१६वें (सबसे खतरनाक) पड़ाव पर पहुंचते थे, तो उनके भीतर की कुलबुलाहट को मिटाना इतना आसान नहीं था। न तो वो दौर व्हाट्सएप वाला था, न ही लड़की का कोई मोबाइल नंबर होता था। हाँ, उसके बाप का नंबर ज़रू र होता था, पर इतनी स्वच्छंदता तब नहीं थी कि कोई उस पर कॉल करने की हिम्मत करे। प्रेमी तो बस अपनी क्लास में उठने वाली हर हंसी के वक़्त छुपकर अपनी प्रेयसी के चेहरे को देखता था। चाहत तो बस इसी बात की होती थी कि वो भी पलटकर एक बार हमें देख ले, तो आ हा हा, मज़ा ही आ जाये। क्लास में टीचर अगर शाबाशी दे दे, तो सोने पे सुहागा। पढ़ने का मन थोड़े न करता था, वो तो बस मेहबूब की नज़र में आने के लिए वो कौम एक्वेशन्स तक के रट्टे लगा डालती थी। चाहे फार्मूला मैथ्स का हो या फिजिक्स का, इन विषयों के भी जवाब रट लिए जाते थे। पेशेंस ...