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पीछे मुड़ के नहीं देखना है दोस्त !!

सफलता जल्दी मिले, ये ज़रूरी नहीं। पर सही जगह मिले, जो चाहिए वो मिले, ये ज़रूरी है।
जिस तरह शेरनी अपने बच्चों को बचाने के लिए अपने कदम पीछे खींचकर झपट्टा मरती है, उसी तरह तुम भी अपने सपनों को बचाने के लिए एक कदम पीछे ले सकते हो।
अगर नहीं तैयार हो, तो अध-कचरी तैयारी के साथ युद्व में उतरना समझदारी नहीं। इस रणभूमि में अभिमन्यु की तरह दुर्योधन के हाथों मरने से अच्छा है, कि अर्जुन की तरह सभी चक्रव्यूहों को तोड़ने की कला सीखकर ही लड़ो।
अपने सिर से इस बोझ को उतारो, एक नई युद्धनीति बनाओ, कसम खा लो कि कभी जिंदगी में किसी को ये कहानी नहीं सुनाआगे कि कैसे तुम्हारा नहीं हुआ? बल्कि अपनी अगली पीढ़ी के लिए वो कहानी तैयार करो कि उनको ऐसा गर्व हो खुदपर, जैसा लव-कुश को अपनी माता सीता और पिता राम को देखकर होता था।
डरो मत क्योंकि मरने के डर से, हर रोज़ मरने से अच्छा है मर जाना।

कोई भी ऐसा बहाना ना दो कि एक क्षण के लिए भी कुंती जैसे भाव दिल-दिमाग में आयें कि "काश! मैंने उस वक़्त कर्ण को अपना लिया होता... काश! उसे मैंने मरने के लिए न छोड़ा होता ! काश..."
अपने सपनों को मरने के लिए मत छोड़ो। 'काश' शब्द का कोई स्थान नहीं, तुम्हारी कहानी में।
अब पूरी जान लगाकर दौड़ने का वक़्त आ गया है मेरे दोस्त !! सही नीति से युद्व में उतरो, अभी चाहे 2-4 कदम पीछे खींचने पड़े, पर असल युद्ध में जयचंदो को पछाड़ना है तुम्हे।।
चाहे कुछ भी हो जाये, चाहे सब खराब हो जाये, चाहे कितना भी डर लगे, पर पीछे मुड़ के नहीं देखना है मेरे दोस्त!! बिल्कुल भी नहीं, क्योंकि सपनो के मरने से ज़्यादा खराब कुछ नहीं हो सकता।।
डरना काहे का? अगर भाग्य में मरना ही लिखा है, तो कर्ण की तरह शान से मरो, कौरवों के जैसे पीठ दिखाकर नहीं।।

© Vikas Tripathi 2018

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