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तो बहुत गरीब हो तुम !

अगर तुमने भी उस दलित के सामने अपने कुलीन होने का प्रपंच किया है,
या तुमने भी उस बच्चे के सामने 'जिसने कल रात पानी में चीनी घोल कर उसमें रोटी डुबाकर' खाया था, के सामने अपने घर मे बनने वाली तीन तरह की सब्जियों का बखान किया है,
अगर तुमने अपने कान्वेंट एडुकेटेड होने का धौंस उस सरकारी स्कूल से पढ़े लड़के पर जमाया है, जो आर्थिक लाचारियों की वजह से वहाँ जा न सका,
या तुमने भी जातिसूचक, धर्मसूचक, प्रान्तसूचक (बिहारी या गंवार जैसे) शब्दबाण चलाकर किसी के हृदय को भेदा है,
अगर तुमने किसी की सफलता किसी के द्वारा अर्जित धन से मापी है, चाहे उसका स्रोत कुछ भी रहा हो,
या तुम उस लड़की/लड़के से मात्र उसकी खूबसूरती या धन की वजह से जुड़े हो,
अगर तुमने करोड़ो होते हुए भी किसी की मेहनत की कमाई मारी है,
या तुमने Gucci, Armani, Rolex पहनकर, ऑटो या सब्जी वाले बूढ़े दादा से 5 रुपये के लिए बहस की है,
अगर हाथ में iPhone होते हुए, दोस्तों के बीच पैसे खर्च होने पर तुम्हारी आंतें ऐठने लगती हैं, तो मेरे मित्र, सखा, बंधु, बहुत बहुत गरीब हो तुम।

"याद रखना, उस ऊपर वाले की अदालत में तुम्हारी अमीरी सिर्फ इस बात से जांची जाएगी कि तुमने कितनी जिंदगियां सँवारी, कितनों को बेमतलब प्यार दिया, कितनों की खुशी में दिल से खुश हुए, और कितनों के गम बांटे।"
अरे, अगर दूसरों के लिए कुछ अच्छा कर/बोल नहीं सकते, तो कम से कम चुप तो रह सकते हैं। जरूरी नहीं कि हर वक़्त कुछ बोला ही जाए, या अपनी नाकामयाबी का ठीकरा किसी और के सिर फोड़ा जाए, या अपनी जिम्मेदारियां दूसरों पर थोपी जाए।
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कोई भी कभी 100% सही नहीं हो सकता। अगर पहले ऐसा किया है, तो कोई बात नहीं, इन बातों का आगे ध्यान रखा जा सकता है। सही दिशा होना ज़रूरी है, दशा चाहे जैसी भी हो। है कि नहीं दोस्त?

© Vikas Tripathi 2018

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