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क्योंकि तुमने B.Tech. नही किया है !!

अभी अभी एक महान आत्मा से बहस हो गई. ये महोदय कुछ बरस पहले राजधानी आ गये थे गाँव से. दसवीं पास थे, तो आकर लग गये एक तथाकथित कम्पनी मे बतौर वर्कर. पिछले १०-१५ वर्षों मे NCR ने बहुत बदलाव देखे हैं, तो इन महाशय की भी तरक्की हुई NCR के बदलते समय के साथ. अब २०-२५००० पाते हैं. कुछ पैसे दुसरे वाले रास्ते से भी जोड़ लिए हैं. उनकी नजर में वो समृद्ध हैं, जिसके पास पैसे हैं, चाहे किसी भी स्रोत से. मुझे भी कोई खास परेशानी नहीं है उनके व्यवहार से, बस मेरे लिए समृद्ध और सफल होने की परिभाषा थोड़ी अलग है उनसे.
खैर, बात ये हुई कि उन्होने वो बात छेड़ दी, जो पिछले ४ बरस के इंजीनियरिंग के दौरान जब भी मैं अपने किसी परिचित से मिला, जितनी भी बार मैं पापाजी के किसी मित्र से मिलवाया गया, जब भी मेरा सामना किसी न किसी (तथाकथित) प्रबुद्ध व्यक्ति से हुआ, तो लगभग हर बार ये बात सुनने को मिली -- "अच्छा, B.Tech. कर रहे हो? आजकल तो इतने B.Tech. वाले हो गये हैं जिसकी कोई हद नही. जिसे देखो, वही B.Tech कर रहा है. तिवारी जी, इतने इंजीनियरिंग वाले सड़क पर घुम रहे हैं आकर, फिर भी इसका दाखिला करा दिया आपने? अरे १५-२०००० की नौकरी तो इतनी मुश्किल से नसीब हो रही है इन्हें १० लाख लगाने के बाद. अगर आपने इन पैसों को बैंक मे भी रख दिया होता, तो इससे ज्यादा ब्याज मिल जाता, और १० लाख भी बच जाते. अरे, कोई व्यवसाय ही डाल देते इतने का, तो भी आज इससे ज्यादा कमाता..."
मैं हँस के टाल देता था हर बार इन बातों को, हर बार. आदत नही है ना बड़ो को जवाब देने की. पर पापाजी विचलित हो जात थे इन बातों से कभी कभी. उन्हें सच मे लगने लगता की कहीं उन्होंने गलती तो नही की मेरी बातों मे आकर? फिर तो बड़ी मुश्किल से ही चुप होते.
और भी बातें सुनता हुँ मैं, जैसे -- "फलाने के बेटे को देखो, कितनी बड़ी दुकान कर ली उसने. ३०-३५००० से तो ज्यादा ही कमाता है" या "फलनवा को देखो, पढ़ाई-लिखाई पर एक्को पैसा और समय बरबाद नही किया, सीधा विदेश गया काम सीख के, और दिनार में कमाता है. घर भी बनवाने जा रहा है, सुने हैं." "मुनचुन था न, ठेकेदार हो गया है कोयला का. बोरी भर के पैसा कमा रहा है. और सचिन तो दौड़ निकाल के पुलिस में भर्ती हो गया, अब तो खुब लूट-लूट लाएगा घर मे. उसके घर वालों की तो लॉटरी लग गई..."
और भी हैं, पर इतना ही मेरी बात समझने के लिए इतना बहुत है. ४ साल पढ़ाई के तो बीते ही इन बातों के साथ, पर जब अब अपना सपना पूरा हो रहा है बतौर इंजीनियर एक प्रतिष्ठित बहुराष्ट्रीय कम्पनी को अपनी सेवायें देते हुए, तो यहाँ भी ऐसे महाशयों से मुलाकात हो जा रही है, जो सफलता और समृद्धि को पैसों के तराजू से तोलते हैं. कहने लगे कि "हम सिर्फ दसवीं पास होकर २५-३०००० कमाते हैं, और आप १० लाख लगाकर ईतनी पढ़ाई करने के बाद हमसे कम ही पाते हैं, तो फायदा क्या हुआ B.Tech. करने का? इससे अच्छा तो...

बस... बहुत हुआ सम्मान, अब मेरी सुनो :
"हाँ, की है B.Tech. १० लाख लगाकर, ४ साल लगाकर, मेहनत लगाकर, परिवार की आशायें लगाकर, माँ-बाप, भाई-बहन से दूर रहकर, अपनी किशोर दिल्लगी को ताक पर रखकर, अपनी उमर से पहले बड़ा होकर..."
"पता है क्यों की B.Tech? ताकि अपने अाप से ऊपर उठकर कुछ सोच सकें. दुकान खोलने और विदेश जाने की सोच से उपर की सोच पैदा कर सकें. स्वार्थ की बातों से हटकर सोच सकें. सिर्फ अपनी तिजोरी भरने की सोच से ऊपर उठकर कुछ कर सकें। मानव कल्याण के लिए आपकी तरह सिर्फ बातें नहीं, कुछ करके दिखा सकें."
"और हाँ, मुझे तो अब तक नहीं मिला एक भी B.Tech. पास सड़क पर घुमता हुआ, अगर तुम्हे मिला है तो जाके देखो उसका वास्तविक रिजल्ट, सच्चाई सामने आ जाएगी. तुमने सिर्फ उन्हें B.Tech. करने जाते देखा है, उन्होंने B.Tech. में क्या किया, वो तुमने नहीं देखा. तो उनको देखकर हमारी औकात का अंदाजा ना लगाओ. सबको एक तराजू में ना तौलो।"
"और हाँ, अगर तुम्हारी ही तरह पढ़ाई पर इतने पैसे ना खर्चने की सोच होती ना सभी भारतीय माँ-बाप की, तो ना तो कलाम बनते ना रमन. शुक्रिया भगवान का कि कुछ हमारे माँ-बाप जैसी सोच वाले लोग हैं वरना जाने क्या होता इस देश का."
"माना मिलते हैं अभी के लिए तुम्हे ज्यादा पैसे, पर वो तुम्हारे लिए मायने रखते हैं. हमारे लिए वो सिर्फ एक जिविका का साधन है, प्यार नहीं. प्यार तो हमें अपने काम से है, अभियन्ता होने के एहसास से है. और रही बात अगर पैसे की, तो हम चाहे जितने से भी शुरू कर रहे हों, सिर्फ एक साल के अनुभव के बाद तुम्हारे १५ साल की गधों वाली मेहनत को अपनी नवोदित रणनीतियों वाली मेहनत से पीछे छोड़ देंगें. जानते हो क्यों, क्योंकि हमने B.Tech. किया है."
"और एक आखिरी बात, अगर तुमने अपने बेटे को विदेश भेजने की बजाय १ सेमेस्टर के लिए भी B.Tech. में भेजा होता, तो उसको और तुम्हें दोनो को B.Tech का महत्व पता होता. 50 Subjects के 150 Papers और 32 Practicals पास करने के बाद बनता है एक B.Tech. दम हो तो पहले ये ४ साल में करके दिखाओ, फिर बताता हूँ कि कितने B.Tech. घूम रहे हैं."
"और जानते हो क्या फायदा हुआ? एहसास मिला, एक इंजीनियर होने का. दोस्त मिले, जान की बाजी लगाने वाले. सोच मिली, देश को कुछ देके जाने की. और समझ मिली, परिस्थितियों को हल्के मे लेने की. बूता मिला, तुम्हारे जैसे लोगों को जवाब देने का."

"उठा के देख लो किसी भी बड़े से बड़े प्रतियोगी परीक्षा का परिणाम, नियुक्ति सूची के शीर्ष पर हमारी ही जाति और कौम के लोग मिलेंगे। तो एक बात तो तय है कि दिक्कत ना तो हमारी डिग्री में है, ना ही हमारी मेहनत में कमी है। दिक्कत ये है कि हम ऐसे परिवेश और व्यवस्था में पैदा हुए, जो हमें मज़बूर कर रही है न्यूनतम सुविधाओं में काम करने को, क्योंकि हमारी भी जिम्मेदारियों से भरी एक ज़िन्दगी है। वरना हमें क्या ज़रूरत थी अपनी लाइन छोड़कर बैंक, SSC, रेलवे के तरफ भागने की?"
"इन्हीं भारतीय संस्थानों से पढ़े हुए इंजीनियर अन्य विकसित देशों में न केवल अपनी सेवायें प्रदान कर रहे हैं (और बदले में एक संतुष्ट और इज़्ज़त भरी ज़िन्दगी भी जी रहे हैं), बल्कि उनको और अधिक विकसित करने में अपने नवोदित सलाह और रणनीतियां भी प्रदान कर रहे हैं। तो दिक्कत इस परिवेश की है जहां शिक्षा व्यवस्था ही लुंज पुंज है, ना की हमारी और हमारे कोर्स की।"
तो ऐसा है (बच्चों की पढ़ाई के खर्च का भी हिसाब रखने वाले, पैसे के नुकसान और फायदे के हिसाब से ज़िन्दगी जीने वाले) लाला जी, एक बात तो तय है कि हम भूखे नहीं मरेंगे, ना ही चिरकुटों वाली ज़िन्दगी जीयेंगे। चाहे अभी के लिए हमारा संघर्ष जैसा भी हो, जिस दिशा में भी हो, इस संघर्षरूपी प्रक्रिया से गुजरने के बाद हम हीरे की तरह चमकेंगे। और उस दिन भी हम तुमसे पूछने नहीं आएंगे कि "तुमने अपने लौंडे को B.Tech. क्यों नहीं कराया?" क्योंकि हम तुम्हारे जैसी संकीर्ण सोच नहीं रखते, और हमारा जीवन दूसरों की कमियां निकालने में नहीं बीतता। "जहाँ भी होंगे वहाँ बलात्...सॉरी, चमत्कार करते रहेंगे।"
क्या कहा? कुछ समझ नहीं आया? छोड़ो, जाने दो, दिमाग पर जोर ना डालो, अभी भी नही आएगा। जानते हो क्यों, क्योंकि तुमने B.Tech. नही किया है !!!

© Vikas Tripathi (2015)

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