हम में से बहुत लोग प्रेम-संबंधों में होंगे। स्वाभाविक है, कुछ गलत नहीं। भावनाओं से खेलने वाली जनता को अगर किनारे करें, तो ऐसे लोगों की तादाद कम नहीं है, जो अपने प्रेम-संबंध को बहुत ही गंभीरता से लेते हैं।
पर स्कूल की चहारदीवारी से उठकर ये प्यार कॉलेज की कैंटीन की तरफ जैसे जैसे बढ़ता है, उसी मात्रा में अपने साथी को लेकर Insecurity और Possessiveness भी बढ़ती है। हम अनजाने में ही सही पर अपने साथी पर हावी होने लगते हैं, जो कहीं न कहीं हमारे ही संबंध में 'A nail in the coffin' की तरह काम करता है।
हम नहीं चाहते कि उसकी किसी से दोस्ती हो, या वो किसी और के साथ बहुत कम्फ़र्टेबल हो। हम सामने वाले की ज़िंदगी मे इतना घुस जाते हैं, कि ये भूल जाते हैं कि वो एक अलग प्राणी है और उसके अपने अधिकार हैं, जो उसे स्वेच्छा से चीज़ों और संबंधों के चुनाव का अवसर देते हैं।
हमारे प्रेम की बाहुल्यता इतनी अधिक हो जाती है कि कई बार सामने वाले को कोफ्त होने लगती है। हमें ये गलत नहीं लगता क्योंकि हमे लगता है कि हम सामने वाले की अच्छाई के लिए डांट या बोल रहे हैं।
कुल मिलाकर फिर एक वक्त आता है कि कुछ ठीक नहीं चलता। उसके घर से निकलने से लेकर घर में वापस घुसने तक हमारी जान उसी के इर्द गिर्द अटकी रहती है। उसका ध्यान रखने की चिंता में हम अपना ध्यान रखना भूल जाते हैं।
जब कॉलेज खत्म होता है, फिर शुरू होती हैं असली लड़ाई। लड़की कहती है कि उसके घर वाले लड़का देख रहें हैं, आप परेशान। अरे, आपने तो ये सोचा ही नही बाबू शोना के चक्कर में कि प्यार करने के पैसे भी लगते हैं। ये कि लड़की तो अपने परिवार के खिलाफ जा ही नहीं सकती, उससे उसकी मर्यादा जाती है (जैसे आपके फ्लैट पे हर दूसरे दिन आने से न गयी हो कभी)।
अचानक से बातें बदल जाती हैं, और जो कभी 'बाबू मैं आपके बिना मर जाउंगी' करती थी वो 'ज़िन्दगी में प्रैक्टिकल होना भी ज़रूरी होता है' जैसे बड़े-बड़े दर्शनवादी डॉयलोग्स बोलने लगती है।
अब आप भूतियों की तरह उसका मुंह निहारते हैं और सोचते हैं कि 'क्या ये वही है जिसके पीछे मैने इतना वक़्त गंवाया है?' 'क्या ये वही है, जिसकी मैंने बच्चों वाली हरकतें बर्दाश्त की हैं?'
तब आपको परमज्ञान की प्राप्ति होती है कि अगर मैने ये वक़्त और ध्यान अपने ऊपर लगाया होता, तो अपनी बेगम दूसरे के किले में नहीं जा रही होती।
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कुल मिलाकर इतनी लंबी कहानी का निष्कर्ष यही है,
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कुल मिलाकर इतनी लंबी कहानी का निष्कर्ष यही है,
कि Care खुद की करें,
कि Party खुद को दें,
कि Time खुद को दें,
कि ज़िन्दगी अपनी जीएं,
कि अपने समय को कीमत दें,
कि प्रेम रखें, पर उसकी अधिकता से बचें।
कि Party खुद को दें,
कि Time खुद को दें,
कि ज़िन्दगी अपनी जीएं,
कि अपने समय को कीमत दें,
कि प्रेम रखें, पर उसकी अधिकता से बचें।
समय से पहले सेट हो जाएं, या फिर शादी के कार्ड में मिले हुए पीले धागे से अपना फटा हुआ सील लें और आगे बढ़े। क्योंकि बेशक आपका कट चुका है, चाहे आप मानें या न मानें...
© Vikas Tripathi 2017
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