रोज़ का वही नाटक। जॉब करोगे तो पढ़ने का मन करेगा, पढ़ाई करोगे तो 'जॉब छूट गयी तो फिर से ये पैकेज मिलेगा कि नहीं?' इस बात का डर सताता रहेगा।
पैसा हाथ मे आते ही ऐसे उड़ाओगे जैसे अम्बानी की इकलौती औलाद हो। ऐसे जैसे कल ज़रूरत ही नहीं तुम्हे इसकी।
साला एक चीज़ पे टिकते नहीं तुम, कभी सिविल सेवा ज्वाइन करने के लिए मरोगे, तो फिर 'इंजीनियर होना भी क्या बुरा है?' सोच के रुक जाओगे।
किसी जगह गलत होते देख गुस्सा भी आएगा कि 'बस अभी जॉब छोड़ के CBI ही ज्वाइन कर लोगे' और फिर अपने कम्फर्ट जोन में वापस घुस जाओगे : कि 'नहीं हुआ तो? पैसा खत्म हो गया तो? फिर से शुरू करना पड़ेगा, शुरू से? पता नहीं फिर इतनी अच्छी कंपनी मिलेगी या नही? पता नही ये पैकेज मिलेगा या नहीं? पता नहीं...'
गुस्सा तो इतना है कि चलते फिरते किसी को भी पीट दोगे। फिर घर आकर 'How to Live a Perfect and Peaceful Life?' पढ़ोगे। बाप को सलाह दोगे कि "आप दूसरों के पचड़े में क्यूँ पड़ते हैं? जमाने भर का ठेका ले रखा है आपने?" और वापस दिल्ली आके वही करोगे। अबे relevence है दोनों चीज़ों का कुछ?
रोज़ टाइम टेबल तो ऐसे बनाओगे जैसे टीना डाबी से भी ज्यादा स्कोर करोगे अगली बार, पर लाइब्रेरी जाओगे सिर्फ पैसा देने। नई किताबों की लिस्ट तो ऐसे बनेगी Insights_on_India से कि जैसे 2 साल से बुकशेल्फ़ में पड़ी हुई किताबों को चाट चुके हो न जाने कितनी बार?
रोज़ टाइम टेबल तो ऐसे बनाओगे जैसे टीना डाबी से भी ज्यादा स्कोर करोगे अगली बार, पर लाइब्रेरी जाओगे सिर्फ पैसा देने। नई किताबों की लिस्ट तो ऐसे बनेगी Insights_on_India से कि जैसे 2 साल से बुकशेल्फ़ में पड़ी हुई किताबों को चाट चुके हो न जाने कितनी बार?
जॉब पे छुट्टियां मारोगे कि 'पढ़ना है...पढ़ना है', लड़की जान देने को तैयार पर गर्लफ्रैंड नहीं बनाओगे कि 'पढ़ना है...पढ़ना है', बात नही करोगे घर पर कि 'पढ़ना है...पढ़ना है', नोएडा के ठाट छोड़कर मुखर्जी नगर में ज्यादा रेंट देकर 25 गज़ के कमरे मे रहोगे कि माहौल चाहिए 'पढ़ना है', रात को इसलिए जल्दी सो जाओगे कि सुबह जल्दी उठकर 'पढ़ना है', पर साला 8 बजे से पहले नींद खुली हो तुम्हारी कभी। 😡 B.Tech का आखिरी exam देने के बात कोई कोर्स/एग्जाम related बुक पढ़ी है तुमने? बात करते हो...😡
अबे सुधर जाओ, वरना ना घर के रहोगे ना घाट के।
जिस इंसान को ये ना पता हो कि उसे जाना कहाँ है? करना क्या है? पाना क्या है? उसके भीतर उत्साह और उमंग जन्म ले ही नही सकते। और बिना उत्साह उमंग का इंसान निर्जीव के समान होता है, क्योंकि उसके भीतर सृजन हो ही नही सकता।
पागल ही हो, पर इंसान हो तुम। बस ये याद रखो की तुम्हारी क्षमता असीमित है, अनंत है। अग्नि और जल दोनो तुम्हारे भीतर ही पलते हैं, बस उनका सही इस्तेमाल सीख लो।
(विकास त्रिपाठी का Vikas Tripathi से मध्यरात्रि-बातचीत पर आधारित।)
© Vikas Tripathi 2017
Kuch aise hi baate Mai bhi krti hu apne ap se hi
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