Skip to main content

एक प्रेम पत्र (जो शायद कभी ना पढ़ा जाये)


स्कूल से निकले हुए आज छह साल हो चुके हैं, उससे जुडी लगभग सभी चीज़े भूल चुकी हैं, सिवाय तुम्हे छोड़कर। याद आता है मुझे जब तुम अगस्त के महीने में हमारी 12वी क्लास में नयी नयी आयी थी, तुम्हारे चुलबुलेपन ने अनायास ही सबकी निगाहें तुम्हारी तरफ खिंच ली थीं। तुम थी भी तो बला की खूबसूरत, ऊपर से १६ साल वाली उम्र। मेरी क्या गलती, तुम मजबूर कर ही देती थी तुम्हे छुप-छुपके देखने को। हिंदी साहित्य तो पटा पड़ा है इस सोलह साल वाली मोहब्बत की कहानियों से। मैं भी तो सोलह का ही था, फिर कैसे नहीं भंवरा कुमुदनी पर मचलता? 

भगवान् ने भी ज्यादा वक़्त नहीं लगाया, तुमको बोलना ही पड़ा टीचर की निगाह में सबसे अच्छे बच्चे से नोट्स के लिए : और इस तरह हमारी बात शुरू हो गयी। मैं तो हवा में उड़ने लगा था उसके बाद, कवितायेँ लिखने लगा था। याद है ना, पहली कविता तुम्हारे लिए ही तो लिखी थी मैंने। जब क्लास में सुनाई तो तुम समझ गयी थी, रोई भी थी तुम।

तुम चाहकर भी मेरे प्रेम को स्वीकृति नहीं दे पा रही थी। इस समाज द्वारा बनाये हुए आडम्बर ब्राह्मण लड़के से प्यार करने की इज़ाज़त नहीं दे रहे थे तुम्हे। तुम्हे लगता था कि सवर्ण और पिछड़ी जातियों का ये अन्तर तुम्हारे प्यार का भविष्य बनने नहीं देगा।

पता है तुमने इस उहा-पोह में पुरे ११२ दिन निकल दिए थे, और मेरी लगभग पूरी जान भी। पर जब तुमने मुझे गले लगाकर आंसुओं के साथ अपने प्रेम को स्वीकार किया था न, मैं उस दिन विश्वविजेता बन गया था। तुमने एक सामान्य सूरत-कद-काठी वाले लड़के को सबसे सुंदर बना दिया था।

सबके सोने के बाद, तुम्हारा दबे पांव अपने पापा के कमरे में जाना और उनके तकिये के नीचे से फ़ोन निकालकर सर्दी की कड़कड़ाती ठण्ड में छत पर जाकर मुझसे पूरी पूरी रात बात करना, मेरे प्रेम को सार्थक कर देता था। तुम्हारी बच्चो जैसी बातें और मेरा तुम्हे समझाना, तुम्हारा रोना और मेरा हंसना, तुम्हारी नादानियाँ और मेरा गुस्सा : सब इंजीनियरिंग 1st ईयर तक १००० किलोमीटर दूर होने के बावजूद चलता रहा।

पर हुआ वही जिसका तुम्हे डर था : तुम मुझसे बात करते हुए पकड़ी गयी और हमारे प्यार को इन जातिगत आडंबरो की आहुति चढ़ना ही पड़ा। मेरे तुम्हारे लाख विरोध के बावजूद तुम्हे अपने परिवार की ही बात माननी पड़ी, और तुमने मुझसे अपना मुँह मोड़ लिया। बहुत गुस्सा आया था तब तुम पर, पर अब तुम्हारी इस बात पर भी गर्व होता है। सच ही तो कहा था तुमने, ''जो लड़की अपने परिवार की नहीं हो सकती, वो तुम्हारी कैसे हो सकती है?''

इंजीनियरिंग के बाकी तीन साल मैंने ढंग से कभी पढ़ाई नहीं की, न कॉलेज गया पुरे सेमेस्टर। तुम और तुम्हारी ३ साल की यादों से निकलने में ही ३ साल लग गए। देखो न, तुम्हारी आवाज़ सुने हुए भी ५ साल बीत चुके हैं, पर तुम वैसी की वैसी ही ज़िंदा हो मेरे जेहन में।

कुछ लोग कहते हैं कि तुम मुझसे प्यार ही नहीं करती थी, अगर करती तो छोड़कर कभी नहीं जाती। पर उन्हें पता नहीं शायद इस कहानी का।

पता नहीं तुम कभी इसे पढ़ोगी भी या नहीं? पर लिख रहा हूँ : क्योंकि वादा किया था मैंने तुमसे कि लिखूंगा १ दिन - तुम्हारी और मेरी कहानी।

© Vikas Tripathi 2017

Comments

Popular posts from this blog

शेर भूखा तो रह सकता है, पर घास नहीं खा सकता।

परेशान हो? फिर से नींद नहीं आ रही? क्यों? अब क्या हुआ? क्या कहा? एक बार फिर हिम्मत टूट रही है? भरोसा भी? सारी बुरी घटनाएं मिलकर एक साथ दबा रही हैं क्या? डर लगता है कि कहीं हार ना जाओ? अरे भाई, है ही क्या तुम्हारे पास हारने को? खेल ही रहे हो, तो बड़ा खेलो। क्या कहा? माँ-बाप, भाई-बहन? उनका क्या होगा? वैसे भी क्या होगा, अगर तुम कुछ नहीं करोगे या बड़ा नहीं करोगे? सब जी रहे हैं ना, जी लेंगे। कोई नहीं मरता। भूल गए क्या? तो अभी कुछ दिनों के लिए खुद के लिए जी लो। डर तो सबको लगता है, किसको नहीं लगता? सब इंसान ही हैं। क्या हुआ जो वो नहीं मिला अब तक, जो चाहिए था? तुमने भी तो वो नहीं किया, जो किया जाना चाहिए था। पुरानी सफलताओं को याद करो। कभी किस्मत ने धोखा दिया है? नहीं ना? कभी ऐसा हुआ कि पूरे दिल-ओ-जान से मेहनत की और सफलता नहीं मिली? नहीं ना? जब भी नहीं मिली, तब हर बार तुम्हे पता था कि नहीं मिलेगी। क्योंकि तुमने उस स्तर पर मेहनत ही नही की कभी। तुमको किस्मत धोखा नहीं देती, तुम खुद देते हो खुद को, किसी न किसी बहाने। क्या? अब क्या होगा? कुछ नहीं, सब ठीक है, नार्मल है। ...

मेरे पास दाई माँ है !

गांव का पहला दिन, और आज मैं अपनी दाई माँ से मिलने गया। हमें जनम तो माँ ने दिया है, पर दिलवाया 'दाई माँ' ने है। गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर डॉक्टरों से ज्यादा जिम्मेदारी इन दाई माँ की होती है। कोई भी इनके आशीर्वाद के बिना पैदा हो जाये, मुश्किल है। इनके अनुभव के आगे MBBS की डिग्री भी फीकी पड़ जाती है। दाई माँ अब और भी ज़्यादा बूढ़ी हो चुकी हैं, पर उनकी आंखें इतनी भी कमजोर नहीं कि अपने लाडले को ना पहचाने। दाई माँ ने बताया कि "कैसे मेरे बचने की कोई  उम्मीद नहीं थी, डॉक्टर ने जवाब दे दिया था, फिर भी उन्होंने बिना चीरे के मुझे इस दुनिया का मुँह दिखाया"। "कैसे वो मुझे लेकर नींद के चलते बिस्तर से नीचे गिर गयी थी, पर फिर भी मुझे कुछ होने नहीं दिया था"। और फिर मेरे बचपन के लगभग सभी किस्से, जिनकी वो इकलौती गवाह हैं। मेरी ज़िन्दगी के एक बहुत बड़े हिस्से में दाई माँ रही हैं। माँ बहुत लंबे वक्त तक ग्राम प्रधान थीं, उनकी अपनी जिम्मेदारियां थी, जिसकी वजह से उनकी गैर-मौजूदगी में हम चारो भाईयों और बहनों को संभालने की जिम्मेदारी दाई माँ की होती थी। हमारी उधम-टोली क...

प्रेम संबंध खत्म क्यों होते हैं?

हम में से बहुत लोग प्रेम-संबंधों में होंगे। स्वाभाविक है, कुछ गलत नहीं। भावनाओं से खेलने वाली जनता को अगर किनारे करें, तो ऐसे लोगों की तादाद कम नहीं है, जो अपने प्रेम-संबंध को बहुत ही गंभीरता से लेते हैं। पर स्कूल की चहारदीवारी से उठकर ये प्यार कॉलेज की कैंटीन की तरफ जैसे जैसे बढ़ता है, उसी मात्रा में अपने साथी को लेकर Insecurity और Possessiveness भी बढ़ती है। हम अनजाने में ही सही पर अपने साथी पर हावी होने लगते हैं, जो कहीं न कहीं हमारे ही संब ंध में 'A nail in the coffin' की तरह काम करता है। हम नहीं चाहते कि उसकी किसी से दोस्ती हो, या वो किसी और के साथ बहुत कम्फ़र्टेबल हो। हम सामने वाले की ज़िंदगी मे इतना घुस जाते हैं, कि ये भूल जाते हैं कि वो एक अलग प्राणी है और उसके अपने अधिकार हैं, जो उसे स्वेच्छा से चीज़ों और संबंधों के चुनाव का अवसर देते हैं। हमारे प्रेम की बाहुल्यता इतनी अधिक हो जाती है कि कई बार सामने वाले को कोफ्त होने लगती है। हमें ये गलत नहीं लगता क्योंकि हमे लगता है कि हम सामने वाले की अच्छाई के लिए डांट या बोल रहे हैं। कुल मिलाकर फिर एक वक्त आता है कि कुछ ठीक...