Skip to main content

देशभक्ति क्या है, और कब है?

देशभक्ति तब है जब एक 11 साल का बच्चा एक लड़की से हो रही बदतमीज़ी का विरोध करता है और शहीद हो जाता है, तब नही जब गोरक्षा के नाम पर आप मर्दानगी दिखाने पहुच जाते हैं। (भले ही आपने कभी किसी गाय को एक बार भी चारा न खिलाया हो।)
देशभक्ति तब है जब एक सैनिक हनुमंथप्पा अपने देश की रक्षा के लिए सियाचिन में जानलेवा न्यून तापमान पर अपनी आहुति दे देता है, तब नहीं जब आप भगवा पहनकर वैलेंटाइन्स डे के दिन जोड़ों को भारतीय संस्कृति को भ्रष्ट करने के जुर्म में परेशान करते हैं। (भले ही आप भी कभी प्रेम-संबंध में रहें हों, और इसका मतलब खूब जानते हों। पर सिर्फ आपके अनुभव कड़वे हो गए, तो चल दिये आप दुनिया सुधारने।)
देशभक्ति तब है जब आप चिप्स खाने के बाद उसका रैपर कूड़ेदान में डालते हैं, अपने आस-पास सफाई रखते हैं और स्वच्छ भारत मे अपना सच्चा योगदान देते हैं, तब नहीं जब आप झाड़ू के साथ एक सेल्फी लेकर फेसबुक पर #स्वच्छभारत हैशटैग के साथ अपलोड करके कमैंट्स और लाइक्स गिनते हैं। (और असल मे किसी के टोकने पर उसी को ज्ञान दे डालते हैं कि "बस मेरे अकेले के ही करने से देश गंदा हो रहा है क्या?")



देशभक्ति तब है जब आप कहीं पर गलत होता देख, रुक कर विरोध करते हैं, तब नहीं जब आप सिर्फ सरकार को नारी-असुरक्षा के लिए दोषी ठहराएं। (और जंतर-मंतर पर कैंडल मार्च करने चले जाएं, फिर से एक "सेल्फी मैंने ले ली आज" वाला पोज़ देने के लिए।)
देशभक्ति तब है जब आप ये जाने की आपके देश को चीन या पाकिस्तान या किसी भी देश से युद्ध करके सिर्फ नुकसान ही होगा और वो पिछड़ जाएगा, तब नहीं जब आप "उड़ा देंगे, फोड़ डालेंगे" के नारे अपनी फेसबुक और व्हाट्सएप्प एकाउंट से पोस्ट करते हैं। (जबकि आप भी जानते हैं कि आप सीमा पर जाकर अपनी जान की बाज़ी देश के लिए नही लगाने वाले, युद्ध के वक्त। आप तो छुपे फिर रहे होंगे कि कहीं कोई बम आपके ऊपर न गिर जाए और आप सिधार न जाएं - स्वर्ग या नरक वो आप ही जानते होंगे।)
- तो ऐसा है मेरे दोस्त, कि अगर आप ऊपर दी गयी किसी भी केटेगरी से ताल्लुकात रखते हैं तो "सविनय निवेदन यह है कि..." आप बाइज़्ज़त मेरी इस #AntiNational एकाउंट से बरी हो जाएं। यकीन मानिए, मुझे छटांक भर भी तकलीफ नही होगी।

© Vikas Tripathi 2017

Comments

Popular posts from this blog

शेर भूखा तो रह सकता है, पर घास नहीं खा सकता।

परेशान हो? फिर से नींद नहीं आ रही? क्यों? अब क्या हुआ? क्या कहा? एक बार फिर हिम्मत टूट रही है? भरोसा भी? सारी बुरी घटनाएं मिलकर एक साथ दबा रही हैं क्या? डर लगता है कि कहीं हार ना जाओ? अरे भाई, है ही क्या तुम्हारे पास हारने को? खेल ही रहे हो, तो बड़ा खेलो। क्या कहा? माँ-बाप, भाई-बहन? उनका क्या होगा? वैसे भी क्या होगा, अगर तुम कुछ नहीं करोगे या बड़ा नहीं करोगे? सब जी रहे हैं ना, जी लेंगे। कोई नहीं मरता। भूल गए क्या? तो अभी कुछ दिनों के लिए खुद के लिए जी लो। डर तो सबको लगता है, किसको नहीं लगता? सब इंसान ही हैं। क्या हुआ जो वो नहीं मिला अब तक, जो चाहिए था? तुमने भी तो वो नहीं किया, जो किया जाना चाहिए था। पुरानी सफलताओं को याद करो। कभी किस्मत ने धोखा दिया है? नहीं ना? कभी ऐसा हुआ कि पूरे दिल-ओ-जान से मेहनत की और सफलता नहीं मिली? नहीं ना? जब भी नहीं मिली, तब हर बार तुम्हे पता था कि नहीं मिलेगी। क्योंकि तुमने उस स्तर पर मेहनत ही नही की कभी। तुमको किस्मत धोखा नहीं देती, तुम खुद देते हो खुद को, किसी न किसी बहाने। क्या? अब क्या होगा? कुछ नहीं, सब ठीक है, नार्मल है। ...

थ्योरी को प्रैक्टिकल से जीतने नहीं दूंगा, एक बार भी नहीं।

सन 2005, उम्र का 12वां पड़ाव, पूर्व माध्यमिक विद्यालय (जिसके प्रधान-अध्यापक मेरे पूजनीय दादाजी थे) का 7वीं कक्षा का छात्र. मुझे विज्ञान से बड़ा लगाव था। वैसे नही जैसे वो मुझे पढ़ाई जाती थी, बल्कि वैसे जैसे मैं पढ़ना चाहता था। सरकारी स्कूल के प्रधानाचार्य का पोता होने का फायदा - स्कूल लाइब्रेरी की सभी किताबों को घर ले जा सकने की अनुमति. मैं एक बार में 10 किताबें लाता, पढता, अपनी डायरी में उनसे अलग अलग विज्ञान प्रयोगों की प्रक्रिया को लिखता, और हर किताब को बाइज़्ज़त यथास्थान रख देता। सिर्फ एक चीज़ कचोटती - उन प्रयागों को खुद न कर पाना. अपने गाँव में उपलब्ध सीमित संसाधनों में पैसे से संपन्न होते हुए भी बड़ी मजबूर महसूस करता। कभी एक दिन अपने गाँव से बाहर जाकर बड़े शहर में पढ़ने की आशा रखता और सोचता कि एक दिन जब मैं भी यहाँ से शहर के स्कूल जाऊंगा तो उन सभी प्रयोगों को जी पाउँगा जो मैंने लिख रखें हैं। उस साल गर्मी की छुट्टियों में मेरे पिता जी के दोस्त सपरिवार आये। साथ में उनका शहरी बेटा - जो लखनऊ के प्रतिष्टित City Montessori School (C.M.S.) का प्रतिभावान विद्यार्थी था, वो भी आया। अब बस, मेरे...

मुखर्जी नगर : Story 2

''१ मिनट में पुलिस बुला दूंगी, अभी दिमाग ठीक हो जायेगा।'' सिविल सेवा परीक्षा २०१५ के निबंध में एक विषय था - ''मूल्यों से वंचित शिक्षा व्यक्ति को अधिक चतुर शैतान बना देती है'' (Education without values seems rather to make a man more clever devil.) इस पर टिपण्णी लिख आज का 'उत्तर लेखन अभ्यास' मैं फेसबुक पर ही कर रहा हूँ --- शाम का समय, मुखर्जी नगर की एक फोटोकॉपी शॉप, जहाँ मैं अपने २ दोस्तों  Abhishek  और Diwakar के साथ लाइन में खड़ा अपने नोट्स की वाइंडिंग करवा रहा हूँ और गपशप चल रही है। तब तक एक मोहतरमा अपने एक कंधे (जिसने उनका झोला पकड़ा हुआ था) के साथ आ धमकी। हमने अपनी पुरानी आदत के अनुसार उनको उस थोड़ी सी जगह में भी जगह दे दी। फिर एक और भाई आये, जो उसी भींड में एडजस्ट हो लिए। हमने उनको भी जगह दे दी। हम तीनो अपने में खोये हुए हैं, तब तक बिलकुल बगल से ज़ोर ज़ोर से चिल्लाती हुयी आवाज़ें आने लगी, ''टच कैसे कर दिया भाई तूने? तमीज़ नहीं है क्या बिलकुल भी? लड़के हो तो जो मर्ज़ी वो करोगे? समझ क्या रखा है?...'' हमने पलट के देखा, तो उस ...